The following is a poem by Taeer, a shayar and Closet Atheist.
है वजूद खुदा का, कैसे मान लिया आप ने?
अनजाने डर को खूब नाम दिया आप ने ...
हम को तो ऐतबार का सबब नही मिलता ,
कहीं बेवजह तो नही भरोसा किया आप ने?
अपने ही बंदो से जो बेपर्दा न हो सका,
फलक पे मकाम उसका, मान लिया आप ने ...
गर है वह हर जगह तो कैद क्यों करना पड़ा?
या कहो उसे भी कोने में बिठा दिया आप ने ...
देह्लीज़ पे जा के चंद सिक्के चढा आते हो,
खुदा से भी कारोबार , खूब किया आप ने ...
औरो को खुशी दे , ताईर दुआ कर लेता ,
उस पर भी बना दी कितनी कहानियाँ आप ने...
1 comment:
Very thought provoking. thanks for introducing us to Taeer.
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